Bhagavad Gita: Chapter 17, Verse 13

विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम् ।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते ॥13॥

विधि-हीनम्-धर्म ग्रन्थों की निषेधाज्ञा के विरुद्ध; असृष्ट-अत्रम्-अन्न अर्पित किये बिना; मन्त्र-हीनम्-वैदिक मन्त्रों का उच्चारण किये बिना; अदक्षिणम्-पुरोहितों को दक्षिणा दिये बिना; श्रद्धा-श्रद्धा; विरहितम्-बिना; यज्ञम् यज्ञ; तामसम्-तमोगुणः परचिक्षते–माना जाता है।

Translation

BG 17.13: श्रद्धा विहीन होकर तथा धर्मग्रन्थों की आज्ञाओं के विपरीत किया गया यज्ञ जिसमें भोजन अर्पित न किया गया हो, मंत्रोच्चारण न किए गए हों तथा दान न दिया गया हो, ऐसे यज्ञ की प्रकृति तमोगुणी होती है।

Commentary

जीवन के प्रत्येक क्षण में मनुष्यों के पास विकल्प होते हैं कि क्या कर्म किए जाएँ। ऐसे कई उचित कर्म हैं जो समाज तथा हमारे हितकारी हैं तथा इसके साथ-साथ ऐसे कई अनुचित कर्म भी हैं जो अन्य लोगों तथा हमारे लिए हानिकारक हैं किन्तु इसका निर्णय कौन करेगा कि क्या लाभकारी है और क्या हानिकारक? यदि कोई विवाद उत्पन्न होता है तो इसे सुलझाने का क्या आधार है? यदि प्रत्येक व्यक्ति स्वयं निर्णय लेने लगेगा तो बड़ा उपद्रव हो जाएगा। अतः धर्मशास्त्रों की आज्ञाएँ मार्गदर्शक के रूप में कार्य करती हैं तथा कभी शंका होती है तब किसी क्रिया की उपयुक्तता को जानने के लिए हम इन धर्मशास्त्रों की सकायता लेते हैं किन्तु तामसिक व्यक्तियों का इन धर्म शास्त्रों में कोई विश्वास नहीं होता। वे धार्मिक समारोह का तो आयोजन करते हैं लेकिन धर्मग्रन्थों के विधानों की उपेक्षा करते हैं। 

भारत में प्रत्येक धार्मिक उत्सव में संबंधित विशिष्ट देवी और देवताओं की आराधना बड़ी धूमधाम तथा भव्यता के साथ की जाती है। समारोह की बाह्य भव्यता-भड़कीली समावट, चमकदार प्रदीपन तथा शोरगुल वाले संगीत के पीछे पास-पड़ोस से अंशदान एकत्रित करने का उद्देश्य होता निहित है। इसके अतिरिक्त धार्मिक समारोह करवाने वाले पुरोहितों को आभार व सम्मान के रूप में दक्षिणा देने संबंधी वैदिक विधि-निषेधों का पालन भी नहीं किया जाता। जिस यज्ञ में धर्मग्रंथों की ऐसी आज्ञाओं के अनुपालन की उपेक्षा की जाती है और आलस्य, उदासीनता अथवा विद्रोह के कारण धर्मशास्त्रों के नियमों का पालन नहीं किया जाता और आत्म-निर्णय की प्रक्रिया अपनाई जाती है तब यह तमोगुण की श्रेणी में आता है। वास्तव में इस प्रकार की आस्था, भगवान तथा धर्मशास्त्रों में अविश्वास का एक रूप है।।

Swami Mukundananda

17. श्रद्धा त्रय विभाग योग

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