यदा सत्वे प्रवृद्धे तु प्रलयं याति देहभृत् ।
तदोत्तमविदां लोकानमलान्प्रतिपद्यते ॥14॥
रजसि प्रलयं गत्वा कर्मसङ्गिषु जायते ।
तथा प्रलीनस्तमसि मूढयोनिषु जायते ॥15॥
यदा-जब; सत्त्वे-सत्वगुण में प्रवृद्ध–प्रबल होने पर; तु-लेकिन; प्रलयम्-मृत्यु, यति–जाता है। देह-भृत्-देहधारी; तदा-उस समय; उत्तम-विदाम्-विद्वानों के लोकान्-लोकों को; अमलान्–शुद्ध प्रतिपद्यते-प्राप्त करता है; रजसि-रजोगुण में; प्रलयम्-मृत्यु को; गत्वा प्राप्त करके; कर्म-सड्.िगषु-सकाम कर्मियों के पास; जायते-जन्म लेता है तथा उसी प्रकार; प्रलीन:-मरकर; तमसि-तमोगुण में; मूढ-योनिषु-पशुयोनि में; जायते-जन्म लेता है
BG 14.14-15: जिनमें सत्वगुण की प्रधानता होती है वे मृत्यु पश्चात ऋषियों के ऐसे उच्च लोक में जाते हैं जो रजो और तमोगुण से मुक्त होता है। रजोगुण की प्रबलता वाले सकाम कर्म करने वाले लोगों के बीच जन्म लेते हैं और तमोगुण में मरने वाले पशुओं की प्रजातियों में जन्म लेते है।
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श्रीकृष्ण अवगत कराते हैं कि जीवात्मा का प्रारब्ध उसके व्यक्तित्व के गुणों पर आधारित होता है। भगवान के विधान के कर्म नियमों के अनुसार हम वही प्राप्त करते हैं जिसके हम पात्र होते हैं जो सदगुणों और ज्ञान को विकसित करते हैं तथा दूसरों के प्रति सेवा की भावना रखते है वे पुण्यवान, विद्वानों, सामाजिक कार्यकर्ताओं इत्यादि के परिवारों में जन्म लेते हैं या वे स्वर्ग के उच्च लोकों में जाते हैं और जो अपने आपको लोभ, धन लोलुपता और सांसारिक महत्त्वकांक्षाओं के अधीन कर लेते हैं वे गहन भौतिक गतिविधियों में संलग्न रहने वाले प्रायः व्यावसायिक परिवारों में जन्म लेते हैं। वे जिनकी रुचि मादक पदार्थों के सेवन, हिंसा, आलस्य और कर्त्तव्य का परित्याग करने में होती है, वे मदिरापान करने वाले और अनपढ़ लोगों के परिवार में जन्म लेते हैं अन्यथा उन्हें विकासवाद की सीढ़ी से नीचे उतरने के लिए बाध्य होना पड़ता है और वह पशुओं की प्रजातियों में जन्म लेते हैं।
कई लोग आश्चर्य करते हैं कि एक बार मानव रूप में जन्म लेने पर क्या वापस निम्न योनियों में धकेले जाना संभव है? इस श्लोक से ज्ञात होता है कि आत्मा के लिए मानव योनी स्थायी रूप से आरक्षित नहीं रहती। वे जो मानव जीवन का सदुपयोग नहीं करते तब वे पुनः पशुओं की निम्न योनियों में जन्म लेने के भयानक जोखिम में फंसे रहते हैं। इस प्रकार से सभी विकल्प हर समय खुले रहते हैं। आत्मा अपने लिए धारण किए गए गुणों की गहनता और आवृत्ति के आधार पर अपने आध्यात्मिक विकास के लिए ऊपर उठ सकती है, समान स्तर पर रह सकती है और यहाँ तक कि नीचे भी गिर सकती है।