ते तं भुक्त्वा स्वर्गलोकं विशालं क्षीणे पुण्ये मर्त्यलोकं विशन्ति ।
एवं त्रयीधर्ममनुप्रपन्ना गतागतं कामकामा लभन्ते ॥21॥
ते वे; तम्-उसको; भुक्त्वा–भोग करके; स्वर्ग-लोकम् स्वर्ग; विशालम्-गहन; क्षीणे समाप्त हो जाने पर; पुण्ये-पुण्य और पाप कर्म; मर्त्य-लोकम्-पृथ्वी लोक में; विशन्ति लौट आते हैं; एवम्-इस प्रकार; त्रयी-धर्म-वेदों के कर्मकाण्ड संबंधी भाग; अनुप्रपन्नाः-पालन करना; गत-आगतम्-बार बार आवागमन; काम-कामाः-इन्द्रिय भोग के विषय; लभन्ते–प्राप्त करते हैं।
BG 9.21: जब वे स्वर्ग के सुखों को भोग लेते हैं और उनके पुण्य कर्मों के फल क्षीण हो जाते हैं तब फिर वे पृथ्वीलोक पर लौट आते हैं। इस प्रकार वे जो अपने इच्छित पदार्थ प्राप्त करने हेतु वैदिक कर्मकाण्डों का पालन करते हैं, बार-बार इस संसार में आवागमन करते रहते हैं।
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श्रीकृष्ण इस श्लोक में यह स्पष्ट करते हैं कि स्वर्ग लोक के दैवीय सुख अस्थायी हैं। जिन लोगों को उन्नत करके स्वर्ग भेजा जाता है जहाँ वे स्वर्ग के सुखों और ऐश्वर्य का भरपूर भोग करते हैं। बाद में जब उनके पुण्य कर्म समाप्त हो जाते हैं तब उन्हें पृथ्वी लोक पर वापस भेज दिया जाता है। स्वर्गलोक को प्राप्त करने से आत्मा की चिरकालिक खोज पूरी नहीं होती। हम भी अपने अनन्त पूर्व जन्मों में वहाँ पर कई बार जा चुके हैं तथापि आत्मा की अनन्त सुख पाने की भूख अभी तक शांत नहीं हुई है। सभी वैदिक ग्रंथों में इसका समर्थन किया गया है।
तावत् प्रमोदते स्वर्गे यावत् पुण्यं समाप्यते।
क्षीणपुण्यः पतत्यगिनिच्छन् कालचालितः।।
(श्रीमद्भागवतम्-11.10.26)
"स्वर्ग के निवासी तब तक स्वर्ग के सुखों का भोग करते हैं जब तक उनके पुण्य कर्म समाप्त नहीं हो जाते। कुछ अंतराल के बाद उन्हें अनिच्छा से बलपूर्वक निम्न लोकों में भेज दिया जाता है।"
स्वर्गहु स्वल्प अन्त दुखदाईं।
(रामचरितमानस)
"स्वर्ग की प्राप्ति अस्थायी है और वहाँ भी दुख पीछा नहीं छोड़ते।"
जिस प्रकार खेल के मैदान में फुटबॉल को चारों ओर खिलाड़ी ठोकर मारते रहते हैं। उसी प्रकार से माया भी जीवात्मा को भगवान को भूल जाने का दण्ड देने के लिए इधर-उधर ठोकर मारती रहती है। आत्मा कभी निम्न लोकों में जाती है और कभी-कभी उच्च लोकों में जाती है। निम्न और उच्च लोकों की असंख्य योनियों जिन्हें यह प्राप्त करती है उनमें से केवल मनुष्य योनि में ही भगवद्प्राप्ति का अवसर मिलता है इसलिए देवता लोग भी मनुष्य जन्म प्राप्त करने हेतु प्रार्थना करते हैं ताकि वे स्वर्ग जाने की कामना की पिछली भूल को सुधारने और भगवद्प्राप्ति का प्रयास कर सकें।
दुर्लभं मानुषं जन्म प्रार्थयते त्रिदशैरपि।
(नारद पुराण)
"मानव जन्म अत्यंत दुर्लभ है। यहाँ तक कि स्वर्ग के देवता भी इसे पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।" इसलिए श्रीराम ने अयोध्यावासियों को यह संदेश दिया
बड़े भाग मानुष तनु पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रंथन्हि गावा।।
(रामचरितमानस)
"हे अयोध्यावासियों! यह आपका परम सौभाग्य है कि आपको मानव जन्म प्राप्त हुआ है जोकि अत्यंत दुर्लभ है और स्वर्ग के देवता भी इसकी इच्छा करते हैं।" जब देवतागण मनुष्य जन्म चाहते हैं तब फिर मनुष्य स्वर्गलोक में क्यों जाना चाहते हैं? इसकी अपेक्षा हमें सर्वात्मा भगवान की भक्ति में लीन होकर भगवद्प्राप्ति का लक्ष्य रखना चाहिए।