Bhagavad Gita: Chapter 6, Verse 22

यं लब्ध्वा चापरं लाभं मन्यते नाधिकं ततः ।
यस्मिन्स्थितो न दुःखेन गुरूणापि विचाल्यते ॥22॥

यम्-जिसे; लब्ध्वा–प्राप्त कर; च और; अपरम्-अन्य कोई; लाभम् लाभ; मन्यते–मानता है; न–कभी नहीं; अधिकम्-अधिक; ततः-उससे; यस्मिन्-जिसमें; स्थित:-स्थित होकर; न कभी नहीं; दुःखेन-दुखों से; गुरूणा-बड़ी; अपि-से; विचाल्यते-विचलित होना;

Translation

BG 6.22: ऐसी अवस्था प्राप्त कर कोई और कुछ श्रेष्ठ पाने की इच्छा नहीं करता। ऐसी सिद्धि प्राप्त कर कोई मनुष्य बड़ी से बड़ी आपदाओं में विचलित नहीं होता।

Commentary

भौतिक जीवन में किसी भी सीमा तक प्राप्त हुई उपलब्धियों से कोई भी प्राणी पूर्णतः संतुष्ट नहीं हो पाता। निर्धन व्यक्ति धनवान बनने के लिए कड़ा परिश्रम करता है और जब वह लखपति हो जाता है तब स्वयं को संतुष्ट मानने लगता है। किन्तु जब वह करोड़पति को देखता है तब पुनः दुखी हो जाता है। करोड़पति भी अपने से अधिक धनवान को देखकर असंतोष प्रकट करता है। चाहे हम कितने भी सुखी हों जब हम उच्चावस्था वाले सुखों की ओर देखते हैं तब हमें अपने सुख बोने दिखाई देने लगते हैं और हमारे भीतर अतृप्ति की भावना जागृत हो जाती है। लेकिन योग की अवस्था से प्राप्त होने वाला सुख भगवान का असीम सुख है क्योंकि इससे श्रेष्ठ कुछ नहीं है। इस सुख की अनुभूति से आत्मा को स्वाभाविक रूप से यह बोध हो जाता है कि उसने अपने चरम लक्ष्य को पा लिया है। भगवान का दिव्य आनन्द भी शाश्वत है और जो योगी इसे पा लेता है। तब फिर उससे यह दिव्य आनंद छिन नहीं सकता। ऐसी भगवद्प्राप्त आत्माएँ भौतिक शरीर में रहते हुए भी दिव्य चेतना की अवस्था में स्थित रहती हैं। 

कभी-कभी बाहर से देखने पर प्रतीत होता कि ऐसे सिद्ध संत अस्वस्थता, विरोधी लोगों और कष्टदायी परिवेश के रूप में संकट का सामना कर रहे हैं किन्तु आंतरिक दृष्टि से ऐसे संत दिव्य चेतना में लीन रहते हैं और निरन्तर भगवान के दिव्य सुख का आस्वादन करते रहते हैं। इस प्रकार बड़ी-बड़ी कठिनाइयाँ भी ऐसे संतों को विचलित नहीं कर सकतीं। भगवान के साथ संबंध स्थापित कर ऐसे संत शारीरिक चेतना से ऊपर उठ जाते हैं और इसलिए वे शारीरिक कष्टों से होने वाली क्षति से प्रभावित नहीं होते। तदानुसार हमने पुराणों में यह सुना है कि प्रह्लाद को कैसे सोँ के गड्ढे में डाला गया, हथियारों से यातना दी गयी, अग्नि में बिठाया गया, पहाड़ से गिराया गया आदि। किन्तु कोई भी विपत्ति प्रह्लाद को भगवान की भक्ति से विलग नहीं कर पायी।

Swami Mukundananda

6. ध्यानयोग

Subscribe by email

Thanks for subscribing to “Bhagavad Gita - Verse of the Day”!